हवा में भी रहता है ब्लेक फंगस ,लक्षण दिखते ही डॉ. से सम्पर्क करें
नाक कान कंठ विशेषज्ञ (E.N.T. Specialist )डॉ.यश शर्मा का कहना है कि ,लापरवाही हो सकती है जानलेवा
देश में इन दिनों कोरोना (कोविड -१९ )के मरीज़ों में हो रहे ब्लेक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस ने डॉक्टरों की चिंता बढ़ा दी है। यह बेहद जानलेवा है और देश में कोरोना के मरीज़ों में तेज़ी से फ़ैल रहा है। इस वक्त देश में ब्लेक फंगस के मामले गुजरात ,महाराष्ट्र ,उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,बिहार ,राजस्थान ,हरियाणा ,और पंजाब में सामने आ रहे हैं। इसी बीच आपको बताने जा रहे हैं कि कोरोना के बाद रिकवर हुए (Post Covid -19 )किन मरीज़ों को ब्लेक फंगस से ख़तरा है। पीजीआईएम्एस चंडीगढ़ से मास्टर्स आफ(एम.एस ) सर्जरी और पंजाब के केंद्रीय अस्पताल जालंधर के कान ,नाक और गला विशेषज्ञ डॉ. यश शर्मा के मुताबिक़ पोस्ट कोविड ब्लेक फंगस अब देश के सामने बड़ी चुनौती है,जब सारा स्वास्थ्य तंत्र कोरोना से जंग लड़ने में लगा हुआ है। डॉ.यश शर्मा कहते हैं कि ब्लेक फंगस हवा में मौजूद होता है। मरीज़ों को धूल भरे वातावरण में जाने से बचना चाहिए . विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार नियमित रूप से नाक में पानी भरने से मदद मिलेगी। शुरुआती लक्षण दिखने पर डॉ. के पास जाएं। मधुमेह रोगियों की नियमित निगरानी की जानी चाहिए।
पोस्ट कोविड फंगस एक नै चुनौती
डॉ.यश शर्मा कहते हैं कि कोरोना वायरस से पीड़ित कुछ गंभीर रोगियों में कोविड ने एक कवक रोग ब्लेक फंगस यानी म्युकरमाइकोसिस को फिर से जन्म दिया है। गंभीर बीमारी में अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो यह जानलेवा बीमारी है। वह कहते हैं कि यह एक गंभीर बीमारी है जो नाक से शुरू होती है और आँख ,मस्तिष्क और जबड़े तक फ़ैल सकती है। डॉ.शर्मा कहते हैं कि पिछले एक महीने में हमने तीन मामले देखे हैं ,साइनस में बीमारी ,दृष्टि की हानि और आँखों की सूजन इसके मुख्य लक्षण हैं।इसे ब्लेक फंगस भी कहा जाता है ,क्योंकि इस बीमारी के कारण शरीर के टिश्यूज़ (ऊतक )मृत हो जाते हैं और प्रभावित हिस्से का रंग गुलाबी से काला हो जाता है।
कोरोना के बाद कौन से मरीज़ होते हैं प्रभावित ?
डॉ.शर्मा का कहना है कि कोरोना के ४० और इससे अधिक उम्र के लोगों में ब्लेक फंगस होने की संभावना ज्यादा होती है। इनमें ऐसे मरीज़ शामिल होते हैं जिनका मधुमेह लम्बे समय से कंट्रोल में न हो।लम्बे समय तक ऑक्सीजन उपचार के दौरान नमी के लिए आसवित जल (डिस्टिल्ड वाटर )का इस्तेमाल न किया गया हो तो भी ब्लेक फंगस होने की संभावना रहती है।कोरोना के दौरान स्टेरॉइड्स की हैवी डोज़ मरीज़ के ठीक होने के बाद घातक हो सकती है। कोविड को नियंत्रित करने के लिए ब्लड शुगर (खून में घुली शक्कर ,रक्त शर्करा )के स्तर और स्टेरॉयड में अचानक वृद्धि भी मरीज़ो के लिए खतरनाक है। गुर्दे की बीमारी के कारण डायलिसिस पर और कैंसर से पीड़ित बीमारी में फेरिटिन का बढ़ा हुआ स्तर भी वायरस को बढ़ने में मदद करता है।
क्या है ब्लेक फंगस के प्रारम्भिक लक्षण (संकेत ,सिग्नल्स )
(१ ) नाक माथे और आँख में और उसके आसपास तेज दर्द।
(२ )माथे और चहरे पर सुन्नता। (नंबनेस )
(३ )बीनाई का धुँधलाना ,धुंधला दिखाई देना ,साफ़ दिखलाई न देना ,दो दो वस्तु का दिखलाई देना (डबल विज़न ),आँख खोलने में असमर्थता
(४ )नाक के एक तरफ में अत्यधिक रुकावट (एक नथुने का बंद होना )
(५ )दांतों का ढीला होना ,दंत शूल।
कैसे होता है ब्लेक फंगस का इलाज़ ?
रोग के विस्तार के बारे में प्रारम्भिक संकेत के लिए ,नाक ,साइनस ,आँख और सिर के लिए विशेष प्रकार के एमआरआई (मेग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग )और सीटी(कंप्यूटिड टमोग्रफी ) स्कैन की सलाह दी जाती है। यह संक्रमण के बाद सात दिन से लेकर तीन सप्ताह तक हो सकता है।
डॉ.शर्मा कहते हैं साइनस ,नाक और आँख और जबड़े जैसे अन्य क्षेत्रों से डैड टिश्यूज़ (मृत ऊतक )हटाकर केवल सर्जिकल प्रबंधन ही इसका समाधान है। इसका प्रबंधन ईएनटी विशेषज्ञ और चिकित्सकों की एक टीम द्वारा किया जाता है। सभी डैड टिश्यूज़ को हटाने के लिए नेज़ल एंडोस्कोपी द्वारा सर्जरी की जाती है। सर्जरी के बाद एंटीफंगल दवाएं एम्फोटेरिसिन या ओरल पोसकोनाज़ोल दिया जाता है। मधुमेह जैसे अन्य उत्तेजक (भड़काने वाले )कारकों ,एजेंट्स को सीमित करने के लिए नियंत्रित किया जाता है।
यह बीमारी सबसे पहले नाक के पीछे ,फिर आसपास और फिर मस्तिष्क (दिमाग ,ब्रेन )में फैलने लगती है। इसका मस्तिष्क तक पहुंचना ही जानलेवा बन जाता है। समय रहते इसका इलाज़ संभव है यह कोई नै बीमारी नहीं है। प्रारम्भिक अवस्था में ही लक्षण दिखते ही इसका इलाज़ होना चाहिए ,करवा लेना चाहिए अविलम्ब।
लैब में टिश्यूज़ सैम्पल देखकर म्यूकर्माइकोसिस की शिनाख्त कर ली जाती है। इसके उपचार के पहले चरण में एंटीफंगल दवाएं दी जाती हैं,और सर्जरी के द्वारा संक्रमित टिश्यूज़ को हटा ओरल मेडिकेशन दिए जाते हैं मुंह से खाने वाली दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
नै बीमारी नहीं हैं ब्लेक फंगस
इसे पहले जाइगोमाइकोसिस कहा जाता था। इसे पहले भी कमज़ोर रोगप्रतिरक्षण (कम्प्रोमाइज़्ड इम्मयूनिटी )वाले लोगों ,वृद्धों तथा डाइबिटीज़ के मरीज़ों में देखा गया है। यदि आप इस श्रेणी में नहीं आते और वह मरीज़ जिन्हें कोविड ट्रीटमेंट में स्टेरॉइड्स की जरूरत नहीं पड़ी उन्हें अधिक घबराने की जरूरत नहीं है।इसमें सावधानियां और समय पर डॉ.की सलाह की जरूरत पड़ती है।
पहले कम आते थे मरीज़
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड से पहले हज़ार मरीज़ों में से ५ या ७ ऐसे मामले देखने को मिलते थे लेकिन कोविड के बाद हज़ार में से बीस मरीज़ों में म्यूकोरमाइकोसिस देखा गया है। पहले यह बीमारी १५ से २० दिनों में फैलती थी लेकिन अब चार पांच दिनों में ही मरीज़ की स्थिति गंभीर हो रही है। यहां तक के उपचार न होने की स्थिति में मृत्यु भी जल्दी हो रही है। यह बीमारी आँखों की पुतलियों के आसपास के इलाके को लकवाग्रस्त कर सकती है।
शरीर में कहीं भी हो सकती है ब्लेक फंगस
वैसे तो यह बीमारी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है लेकिन यह सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव नाक एवं आँखों के आगे पीछे डालती है। नाक में यह फंगस बहुत तीव्र गति से वृद्धि करता है और तीन से पांच दिन के अंदर ही संक्रमण फैलने लगता है।
विशेष :
दोस्तों अमूमन हमारे घरों में फ्रिज में रखी सामग्री खाने लायक रह गई है या नहीं इसकी पड़ताल सूंघ कर की जाती रही है।कई मर्तबा ब्रेड में निर्धारित सुरक्षित अवधि से पहले ही फंगस लग जाती है बेशक यह दो चार स्लाइस में ही दिखती हो लेकिन इसके सूक्ष्म बीजाणु हवा में फ़ैल सकते हैं। ऐसे में फ़ौरन पूरी ब्रेड को लिफ़ाफ़े में बंद करके फेंक देवें इन दिनों। सामिग्री की खाद्य गुणवत्ता परखने के लिए उसे हर गिज़ हर गिज़ सूंघकर ना देखें। यही नासिका इसका प्रवेश द्वार है मास्क इसे ढके रहता है मास्क पहने दो तीन गज़ की दूरी बनाये रहें। बचाव सदैव कारगर रहता है इलाज़ से।
कृपया इस लेख को अंग्रेजी में और विस्तार से पढ़ने के लिए veerubhai05.blogspot.com पर जाएँ।
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