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अक्तूबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या कर रही है केरल की रक्तरँगी लेफ्टीया सरकार

आउटलुक टीम ति‍रुवनंतपुरम के कुंडमानकादावु में शनिवार सुबह कुछ अज्ञात हमलावरों ने स्वामी संदीप नंदा गिरी आश्रम में आगजनी की है। स्वामी संदीप नंदा ने मीडिया के सामने आकर सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश का खुलकर समर्थन किया था। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, शनिवार सुबह कुंडमानकादावु में स्वामी संदीप नंदा गिरी आश्रम में कुछ अज्ञात हमलावरों ने हमला किया और आगजनी की जिसमें दो कार और एक दुपहिया वाहन जलकर खाक हो गए। हमलावरों को नहीं बख्शा जाएगाः सीएम मुख्यमंत्री विजयन पिनराई ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि सरकार किसी को कानून अपने हाथ में नहीं लेने देगी। उन्होंने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि शारीरिक हमले तब होते हैं जब आप वैचारिक रूप से सौदा नहीं कर सकते। आश्रम पर हमला करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवेश की दी थी इजाजत सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को जाने की इजाजत दे दी थी। कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत न देना संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की

अकर्म एवं भक्ति, SI-11, by shri Manish Dev ji (Maneshanand ji) Divya Srijan Samaaj

सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=otOjab3ALy4 जो अकर्म  में कर्म को और कर्म में अकर्म को देख लेता है बुद्धिमान वही है। भगवान् अर्जुन को अकर्म और कर्म के मर्म को समझाते हैं। कर्म जिसका फल हमें प्राप्त  होता है वह है और अकर्म  वह जिसका फल हमें प्राप्त नहीं होता है।   वह योगी सम्पूर्ण  कर्म करने वाला है जो इन दोनों के मर्म को समझ लेता है।  अर्जुन बहुत तरह के विचारों से युद्ध क्षेत्र में ग्रस्त है । युद्ध करूँ न करूँ।  सफलता पूर्वक  कर्म करना है तो इस रहस्य को जान ना ज़रूरी है। अकर्म  वह है -जिसका फल प्राप्त नहीं होता। जो कर्म अनैतिक है जिसे नहीं करना चाहिए वही विकर्म है।वह कर्म जो नहीं करना चाहिए जो निषेध है वह विकर्म है।  जिस दिन कर्म और अकर्म का भेद समझ आ जाएगा। मनुष्य का विवेक जागृत होगा उसी दिन भक्ति होगी।तब जब घोड़े वाला चश्मा हटेगा और उसके स्थान पर विवेक का चश्मा लगेगा।    भगवान् अर्जुन से कहते हैं :हे अर्जुन !तू कर्म अकर्म और विकर्म के महत्व को मर्म को जान तभी तेरे प्रश्नों का समाधान होगा के पाप क्या है, पुण्य क्या है क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ? कर

कर्म, अकर्म एवं विकर्म by Shri Manish Dev ji(Maneshanand ji), SI-10, Divya Srijan Samaaj

कर्म, अकर्म एवं विकर्म by Shri Manish Dev ji(Maneshanand ji), SI-10, Divya Srijan Samaaj प्रकृति स्वयं कर्म परायण है। ये जीव जो प्रकृति के वश रहता है यह भी कर्म परायण है प्रकृति (इसके तीन गुण )जीव से कर्म करवा ही लेते है। भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म ,अकर्म और विकर्म का स्वरूप समझाते हुए कहते हैं -हे अर्जुन  कर्म क्या है और अकर्म क्या है इसे लेकर बड़े बड़े ग्यानी व्यामोह में फंसे रहते हैं। कर्मों की गति बड़ी गहन है।  किम कर्म किमकर्मेति कव्योअपयत्र मोहिता : |  तत् ते  कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यते अशुभात ||  कर्म के फल का स्वरूप कैसा होगा उसके हिसाब से कर्म को तीन भागों में बांटा जा रहा है : कर्म ,अकर्म ,विकर्म।  कर्म करने में नीयत के अनुसार फल मिलता है मंदिर में रहने वाला पुजारी पूजा अर्चना भगवान् को नहलाना आदि कर्म करता हुआ दिख सकता है लेकिन अगर उसकी नीयत कहीं और है भोग विलास में है तो उसका कर्म अकर्म हो जाएगा। इसी प्रकार एक नेता या समाज सेवी ऊपर से समाज सेवा  में संलग्न दिख सकता है लेकिन अगर उसकी नीयत वहां नहीं है सेवा में उसका मन नहीं है किसी और

शशि थरूर का #Metooशशि थरूर का #Metoo

शशि थरूर का #Metoo  यदि किसी कहानी कथा का आरम्भ उसका प्रवेश द्वार है तो कहानी या पोस्ट का शीर्षक उस द्वार पर लिखा सुस्वागतम है। स्वागत है शशि थरूर जी आपका। आप भारत देश को समझा रहें हैं श्रेष्ठ हिन्दू ,श्रेष्ठ मुसलमान ,श्रेष्ठ ईसाई ,श्रेष्ठ बौद्ध ,श्रेष्ठ सिख ,श्रेष्ठ पारसी ,बनिया ,ब्राह्माण,शूद्र कौन ? (१ )पूछा जा सकता है क्या हिन्दू को आत्मा रक्षा का अधिकार नहीं है ? (२ )क्या मंदिर तोड़के मस्जिद बनाने वाला मुसलमान श्रेष्ठ है ? (३ )क्या वह मुसलमान श्रेष्ठ है जिसे भारत देश को तोड़ने के कामों में खर्ची के लिए हवाला से पैसा आ रहा है ? (४ )घाटी में अलगाव वादियों का समर्थन करने  वाला हिन्दू या मुसलमान श्रेष्ठ है ? (५ )वह हिन्दू श्रेष्ठ है जो नेहरू की तरह अपनी बीवी को तपेदिक में छोड़ के भाग गया था उसके पास समय नहीं था ? (६ )वह थरूर श्रेष्ठ है जिसने बीवी को आत्महत्या के कगार पे ले जाकर छोड़ दिया जबकि वह पहले  से अवसाद ग्रस्त थी,बायकायदा उसका इलाज़ भी चल रहा था ?  वह जुल्फिकार अली भुट्टो श्रेष्ठ थे जो कहते थे भारत के सीने पे घाव करते चलो हज़ार हज़ार। क्या आप पड़ोसी पाकिस्तान को ये

Participating & learning the finest of South Indian culture & traditions.... (एक प्रतिक्रिया उल्लेखित वाल पोस्ट पर :)

एक प्रतिक्रिया उल्लेखित वाल पोस्ट पर : सारा सनातन धर्मी  देवकुल एक ही जगह जैसे ग्रुप फोटो खिंचवा रहा हो और उनका परिचय देने वाला उस शाम का मेजबान नवरात्र की दूसरी संध्या को एक नए मुकाम तक ले गया। परिचय देव कुल का संपन्न हुआ अब बारी दक्षिण भारतीय व्यंजनों की थी ,उत्तर भारत का दही भात यहां कर्ड राइस के रूप में नए अवतार में होता है। खिचड़ी पोंगल बन नए स्वाद रचती है अलबत्ता मेजबान ने   मिष्ठान्न के रूप में जलेबी और हलुवा मूंग की दाल का भी प्रस्तुत किया और भी बहुत कुछ था लेकिन सत्तर के पार सब कुछ को खाने की न ललक बकाया रह जाती है न मुंह में बित्ते  दांत।  एक बेहतरीन किताब मेजबान के यहां देखी एक दो पन्ने खंगाले और दूसरे ही क्षण हमारे लाडले 'जीसाहब' पुत्र से ज्यादा नेहा लुटाने वाले 'दामाद -दोस्त' ने हमारी इच्छा को भांपते हुए उस किताब का अमेजन पर ऑनलाइन आर्डर कर दिया।  किताब जीवन इकाइयों जींस की बात करती है एक विडंबना की  ओर इशारा भी ,कि आधुनिक साधन संपन्न विज्ञान पुरुष सृष्टि को जान ने  के लिए पहले उसके खंड करता है और यह विभाजन आखिरी सीमा तक जाता है जिसके  

मूस बिलाई एक संग, कहो कैसे रह जाय , अचरज एक देखो हो संतों, हस्ती सिंह ही खाय। मूस (मूषक ); बिलाई (बिल्ली );हस्ती (हाथी )

कबीर इस बारहवीं रमैनी में माया -मोह, मन का राग रंग सबको  त्यागने की बात प्रतीकात्मक  ढ़ंग से कहते हैं। देखिये कुछ बानगियाँ : माटी के कोट पसान को  ताला, सोइ एक बन सोइ रखवाला।  शब्दार्थ :पसान (पाषाण ),कोट (किला ) कबीर कहते हैं यह शरीर तो वैसे ही जड़ है जड़ तत्वों का जमा जोड़ है हवा पानी  मिट्टी, आकाश और आग का ही तो  इकठ्ठ है।इस पर जड़ पाषाण का ताला मत जड़। अपनी विवेक बुद्धि को पहचान अन्वेषण कर हित , अहित का। यह जड़ बुद्धि ही माया है। इस अविद्या ,माया के राग रंग रूप से तू मुक्त हो।   सो बन देखत जीव  डिराना, ब्राह्मण वैष्णव एक ही जाना। बन (माया का जंगल ),ब्रह्मण -  वैष्णव(कर्म कांड के धंधे बाज़ ) यह माया का जंगल माया का कुनबा तूने ही रचा है। यह तो जाना ही जाना है यह शरीर भी जाना ही जाना है बुढ़ापे से रोग से छीजना ही छीजना है। इससे क्यों भयभीत होता है यह तेरा निज स्वरूप नहीं है तेरा निज स्वरूप न कहीं  जाता है न कहीं से आता है तेरे ही साथ रहता है। लेकिन उस पर माया रुपी जंगल हावी रहता है।  ज्यों किसान किसानी करिहि , उपजे खेत बीज नहीं परिहि।   ये जो संतों की  भीड़ अनेक मत -मतांतरों के धर्म ग