उपरोक्त पद संत तुलसी दास द्वारा रचित विनय पत्रिका से लिया गया है ! ॐ ॐ ॐ
कौन है वह , जो दूज के चाँद सा मिला , देखते ही देखते पूर्ण चंद्र बना और ईद का चाँद हो गया। भाव -सरणियाँ (क्षणिकाएं )-१
ऐसो कौ उदार जग माहीं । बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर, राम सरस कोउ नाहिं ॥ जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी । सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी ॥ जो संपति दस सीस अरप करि रावण सिव पहँ लीन्हीं । सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित हरि दीन्हीं ॥ तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो । तो भजु राम काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो ॥
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं - इस संसार में भगवान् राम के समान दयावान कोई नहीं है जो बिना सेवा के दीन -दुखियों पर अपनी कृपा बरसाते हैं . बड़े बड़े मुनियों , ज्ञानियों को भी अपने योग और तपस्या के बल पर वैसा आशीर्वाद नहीं मिल पाता , जैसा भगवान् राम ने जटायु और शबरी को दिया . जिस कृपा को पाने के लिए रावण को अपने दस सिरों का बारम्बार अर्पण करना पड़ा , वही प्रभु कृपा विभीषण को कुछ त्याग किये बिना श्रीराम से प्राप्त हो गई . इसलिए कवि कहतें हैं - हे मन ! अगर मेरे जीवन में सभी सुखों को पाना है और भगवान् की भक्ति पानी है तो श्रीराम को भजो . वही सबका कल्याण करते हैं और सबकी मनोकामना पूरी करते हैं !
हरे कृष्णा
संदर्भ -सामिग्री :https://hindi.speakingtree.in/allslides/%E0%A4%90%E0%A4%B8%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A5%8C-%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A5%A4
उपरोक्त पद संत तुलसी दास द्वारा रचित विनय पत्रिका से लिया गया है ! ॐ ॐ ॐ
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें