सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

लातों के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों या बाहर से

 लातों  के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों  या  बाहर से। मणिशंकर सोच और प्रजाति  के पढ़े लिखे गंवार इतना भी नहीं जानते। ये मूढ़मति स्मृति भ्रंश भूल गए बाजपेयीजी की  सदाशयता ,लाहौर बस यात्रा ,आगरा संवाद और कारगिल।

ये टुकड़खोर स्वनामधन्य आईएएस खाता इस देश का है ढपली  पाकिस्तान  की बजाता है। ये साहित्य उत्सव  करांची का इस्तेमाल भारत निंदा के लिए करते हुए ज़रा भी नहीं लजाते ,सिद्ध होता है ये पक्के कांग्रेसी सोनिया शुक हैं।

पाक भगत सिंह और वीरसावरकर को हमारी  सांझी विरासत बतलाता है। यह नालायक उनकी प्रतिमा पोर्ट ब्लेयर से  हटवा देता है। बुद्धि का दुरपयोग ख़बरों में बने रहने लिए कैसे किया जाता है ये कोई सोनिया स्वजनों ,सोनिया -स्वानों से सीखे। ताज्जुब ये है  ये दुर्मुख  कलमखोर अंग्रेजी के रिसालों में भुगतान लेख (Paid features )छपवाता है।    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भाव -सरणियाँ (क्षणिकाएं )

कौन है वह , जो दूज के चाँद सा मिला , देखते ही देखते पूर्ण चंद्र बना और  ईद का चाँद हो गया।   भाव -सरणियाँ (क्षणिकाएं )-१ 

ये अन्नदाता नहीं भूहन्ता हैं

ट्वीट जगत से साभार : मुनींद्र मिश्र जी कहते हैं: 'हरित क्रान्ति से हुई आत्मनिर्भरता से पहले लोग ज्वार बाजरा मक्का बड़े चाव से खाते थे और इनकी खेती में जल का उपयोग भी सीमित हुआ करता था।'  हमारी टिपण्णी :मिश्र जी यही पौष्टिक अनाज हुआ  करता था खाद्य रेशों पुष्टिकर तत्वों से भरपूर।  शिवकांत जी लंदन से लिखते हैं प्रत्युत्तर में  :सच बात तो यह है ,पंजाब ,हरियाणा ,और उत्तरप्रदेश के किसान कर दाता के पैसे से सस्ती हुई दरों पर पानी ,बिजली ,खाद लेकर मजदूरों का दुनिया की न्यूनतम मजदूरी पर शोषण करते हुए ऊंची MSP पर बेचने के लिए उन जमीनों पर धान ,गेंहू और गन्ना उगाते हैं जो मोटे स्वास्थ्यप्रद अनाजों के लिए बनी है। धान गेंहू और गन्ने से भूजल सूख गया है। नहरी जल ,रासायनिक खाद और कीटनाशकों से जल -जमीं खारे और विषाक्त हो गए हैं। गेंहू ,बासमती  ने मधुमेह और जिगर के रोगों की महामारी फैला दी है। ये अन्नदाता नहीं  भूहन्ता हैं।सब्सिडी का बढ़ावा न देकर यूरोप की तरह इनकी उपज पर रोक लगनी चाहिए।  मुनींद्र मिश्र :इस पर भारत में रोक कैसे लगे कोई चर्चा तक तो करता नहीं। धान और गेंहू आज खा रहे हैं पर यही हालात

सिंहासन और लकड़बघ्घे -डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश '

सिंहासन और  लक्कड़बघ्घे -डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश ' सिंहासन की ओर न देखो  लक्कड़बघ्घों ! तुम इसके हकदार नहीं हो ! (१ ) तुम क्या जानो सिंहासन को,      महाप्राणक कर्त्तापन को  .          यह है प्रचंड अग्निसार ,         दाहक ज्वाला अतिदुस्तर ,     पार करोगे ?पास तुम्हारे     इसका कोई उपचार नहीं है। (२ ) मृत शिकार को खाने वाले ,       लम्पट उमर बिताने वाले ,       वर्णसंकर सुख पाने वाले ,          क्या जाने सिंहासन -संसद ,      भारतवर्ष सुशासन क्या है !      इसका सौम्य सुवासन क्या है !  (३ )द्रुपद -सुता सी परम पावनी ,      है भारत की अपनी संसद ,      राष्ट्र निरंतर करता चिंतन ,      संवादन अरु प्रति -संवादन ,      सूत्र -विचारण और निर्णयन।      इसी से निर्मित है रचना मन ,      भारत -जनकी संसद का। (४ )भारत नहीं है संज्ञा केवल ,     भारत भाव विशेषण है।       अति पुरातन फिर भी नूतन ,     यह भारत का दर्शन है।    युगकाल चिरंतन है भारत ,    यह भारत सदा सनातन है,   भारत का यह लक्षण है। (५  )    सिंहासन है यज्ञ समर्पण ,          स