ट्वीट जगत से साभार :
मुनींद्र मिश्र जी कहते हैं: 'हरित क्रान्ति से हुई आत्मनिर्भरता से पहले लोग ज्वार बाजरा मक्का बड़े चाव से खाते थे और इनकी खेती में जल का उपयोग भी सीमित हुआ करता था।'
हमारी टिपण्णी :मिश्र जी यही पौष्टिक अनाज हुआ करता था खाद्य रेशों पुष्टिकर तत्वों से भरपूर।
शिवकांत जी लंदन से लिखते हैं प्रत्युत्तर में :सच बात तो यह है ,पंजाब ,हरियाणा ,और उत्तरप्रदेश के किसान कर दाता के पैसे से सस्ती हुई दरों पर पानी ,बिजली ,खाद लेकर मजदूरों का दुनिया की न्यूनतम मजदूरी पर शोषण करते हुए ऊंची MSP पर बेचने के लिए उन जमीनों पर धान ,गेंहू और गन्ना उगाते हैं जो मोटे स्वास्थ्यप्रद अनाजों के लिए बनी है।
धान गेंहू और गन्ने से भूजल सूख गया है। नहरी जल ,रासायनिक खाद और कीटनाशकों से जल -जमीं खारे और विषाक्त हो गए हैं। गेंहू ,बासमती ने मधुमेह और जिगर के रोगों की महामारी फैला दी है। ये अन्नदाता नहीं भूहन्ता हैं।सब्सिडी का बढ़ावा न देकर यूरोप की तरह इनकी उपज पर रोक लगनी चाहिए।
मुनींद्र मिश्र :इस पर भारत में रोक कैसे लगे कोई चर्चा तक तो करता नहीं। धान और गेंहू आज खा रहे हैं पर यही हालात रहे तो शायद पचास साल भी नहीं लगेगा जल स्रोतों को सूखते हुए। मैंने अपनी अर्द्ध शतकीय यात्रा में कितने जलस्रोतों को जलविहीन होते देखा है।निरंतर देख रहा हूँ पर काम बस नाम मात्र का ही है।
शिवकांत :जल स्रोतों की चिंता बाद में सही पहले लोगों और उनकी सरकारों को स्वास्थ्य की चिंता तो करनी चाहिए। डायबिटीज़ और लिवर में भारत सबसे आगे हो गया है और उसका सबसे बड़ा कारण मोटे अनाज छोड़कर बासमती ,गेंहू और चीनी खाना है। इनकी उपज पर टेक्स लगाकर मोटे अनाजों पर सब्सिडी देनी होगी।
हमारी टिपण्णी :इन दोनों महानुभावों ने जो कुछ कहा है वैज्ञानिक अध्ययनों के हालिया निष्कर्षों के आलोक में कहा है। आकस्मिक नहीं है भारत जीवन शैली रोगों की राजधानी बन चुका है। मेडिकल ट्रायड मधुमेह -उच्चरक्तचाप-हृद रोगों का हब यही है। वेषधारी किसान यथा स्थिति को बनाये रखना चाहतें हैं इनकी ऐयाशी का आलम ये है पंजाब की धरती एल्कोहल से गंधाने लगी है। मिट्टी के नीचे भूजल नहीं है बैगपाइपर है।दिल्ली की सीमाओं को ,धमनियों को अवरुद्ध करने वाले यही पंजाब हरियाणा के बेवड़े हैं।ये अक्ल- टिकैत पैसे की अकड़ में हैं।
कथन शब्दार्थ :अक्ल -टिकैत =अक्ल के दुश्मन
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