सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

४४० सांसदों वाले ऊपरले और निचले सदनों ने यानी अपर और लोवर हाउस ने जिस नागरिकता संशोधन बिल को पारित किया है उसे प्रियंका वाड्रा देश को तोड़ने वाला कदम बतला रहीं हैं

४४० सांसदों वाले ऊपरले और निचले सदनों ने यानी अपर और लोवर हाउस ने जिस नागरिकता संशोधन बिल को पारित किया है उसे प्रियंका वाड्रा देश को तोड़ने वाला कदम बतला रहीं हैं। देश को तोड़ने का काम इनकी अम्मा जी और सुबुद्ध भाईसाहब सरे आम करवा रहें हैं पेट्रोल से (गाड़ियां जलवाकर ),सड़कों पर पथ्थर बाज़ी से हद दर्ज़े की हुल्लड़बाजी से जामिया में दस नंबरियों को घुसवाने का षड्यंत्र इन्हीं लोगों ने रचा है इसकी पटकथा इन्होनें पहले ही लिख ली थी। रायसीना हिल पर दवाब इन्हीं की अगुवाई में डाला गया है। इनकी अम्मा ने आते ही जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार करवाया था। इनकी दादी के पिता श्री द्वारा ये बांट के देश को खाने का काम शुरू हुआ था। जिन्ना जो कभी हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे इन्हीं की शह पर बाद में देश के सांप्रदायिक आधार पर बांट के आधा आधा खाने पे अड़ गए।अल्लामा इकबाल ने पाक जाने के बाद अपना रूख और भी कड़ा करते हुए लिखा सारा जहां हमारा। उसी का विकृत रूप इस्लामिक बुनियाद परस्ती दहशद गर्दी बनी है। 

   पहले अंग्रेज़ों से मिलकर सिखों को अलग करवाया फिर  ,जैनियों को वृहत्तर दायरे से सनातन धर्म के बाहर निकलवाया यह तो गनीमत रही इन्हें ये इल्म नहीं हुआ के जैनियों में भी स्वेताम्बर और दिगंबर दो अलहदा सम्प्रदाय होते हैं वरना इनके बंटवारे का काम  भी इसी खानदान के हाथों संपन्न होता।कर्नाटक में शैव सम्प्रदाय से  से लिंगायतों को अलग करने  का बेशर्म निर्णय लिया इन लोगों ने। नेहरू कांग्रेसियों के द्वारा दो बार हिंदू समाज के संतों की हत्याएं करवाईं गईं ।इंदिराम्मा ने तो देश के संविधान को ही पलीता लगाके आधी रात को देश में आपातकाल लागू कर दिया। रायसीना हिल से दम अगले दिन हिलवाई गई।  कोशिश  तो इनकी बाबा रामदेव के सफाये की भी थी पर वे ईश्वर की  कृपा से बच गए।
गोधरा करवाने का जेहादियों के साथ किनका तालमेल था ?यह जग जाहिर है। हिन्दू परिवारों को तोड़ने के लिए ऐसे क़ानून बनाये के बहन भाइयों के सहज मेल को नष्ट कर उन्हें संपत्ति अधिकार में उलझा दिया। इन्हीं के प्रताप से परिवारों में लेस्बियन प्रवृत्ति को उभारा गया। साध्वी प्रज्ञा जैसे निरपराध संतों पर ज़ुल्म किया गया। हिन्दुओं के प्रति इनके मन में बेशुमार ,बेहद की  (अनंत) नफ़रत है। कभी प्रधानमन्त्री रहे सरदार मनमोहन सिंह से कहलवाया गया के देश के संशाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है। देश की हिन्दू जनता इनसे इतनी तंग है के उनकी सामूहिक आह शाप बनकर नेहरू कांग्रेसियों पर पड़ेगी। वक्त दूर नहीं है।जब ये ४४ से चार पर आके मानेंगे। 

वक्त दूर नहीं है  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Secrets of RSS Demystifying the Sangh(HINDI ALSO )

RSS volunteers at a camp in Shimla last year. आरएसएस संक्षिप्त रूप है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का। संघ एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक गैरराजनीतिक संगठन है अपने जन्म से ही। आज इससे संबद्ध समाज सेवी संस्थाओं का एक पूरा नेटवर्क इंटरनेट की तरह सारे भारत में देखा जा सकता है। इन संस्थाओं के पूरे नेटवर्क ,फैलाव- प्रसार को ही 'संघपरिवार 'कहा जाता है। यदि आप इसी संस्था के बारे में मानस प्रकाशन ,4402/5A ,Ansari Road (Opp. HDFC Bank ),Darya Ganj ,New -Delhi -110 -002 से प्रकाशित पुस्तक 'Secrets  of RSS Demystifying the Sangh ,लेखक रतन शारदा ,पढेंगे और भारतधर्मी समाज से आप गहरे जुड़े हैं आपकी धड़कनों में भारत की सर्वसमावेशी संस्कृति का थोड़ा सा भी अंश मौजूद है ,आप इस संस्था की सहनशीलता ,औदार्य और भारत राष्ट्र के एकत्व को बनाये रखने की इसकी जी जान से की गई कोशिश की तारीफ़ करने में कंजूसी नहीं बरतेंगे। काश इस संस्था का फैलाव आज़ादी से पहले आज जैसा व्यापक होता तो मुस्लिम लीग और लेफ्टिए  अखंड भारतवर्ष के विभाजन का प्रस्ताव पारित करने से पहले ज़रूर संकोच करते। अपने वर्तमान स्वरूप म...

भाव -सरणियाँ (क्षणिकाएं )

कौन है वह , जो दूज के चाँद सा मिला , देखते ही देखते पूर्ण चंद्र बना और  ईद का चाँद हो गया।   भाव -सरणियाँ (क्षणिकाएं )-१ 

अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।

अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं। (ग़ज़ल निदा फ़ाज़ली साहब ) अंतरा -१ पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है, पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है, अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं ... अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम . हैं .. रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। अंतरा -२ वक्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से. वक्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से. किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं .. किसको मालूम कहा के है किधर के हम हैं ... रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। अंतरा (३ ) चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब। चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब। सोचते रहते हैं किस रहगुज़र के हम है. सोचते रहते हैं किस रहगुज़र के हम है. रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं ... अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। ...