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सिंहासन और लकड़बघ्घे -डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश '

सिंहासन और  लक्कड़बघ्घे -डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश '

सिंहासन की ओर न देखो  लक्कड़बघ्घों !

तुम इसके हकदार नहीं हो !

(१ ) तुम क्या जानो सिंहासन को,

     महाप्राणक कर्त्तापन को  .
   
     यह है प्रचंड अग्निसार ,
   
    दाहक ज्वाला अतिदुस्तर ,

    पार करोगे ?पास तुम्हारे

    इसका कोई उपचार नहीं है।

(२ ) मृत शिकार को खाने वाले ,

      लम्पट उमर बिताने वाले ,

      वर्णसंकर सुख पाने वाले ,
   
     क्या जाने सिंहासन -संसद ,

     भारतवर्ष सुशासन क्या है !

     इसका सौम्य सुवासन क्या है !

 (३ )द्रुपद -सुता सी परम पावनी ,

     है भारत की अपनी संसद ,

     राष्ट्र निरंतर करता चिंतन ,

     संवादन अरु प्रति -संवादन ,

     सूत्र -विचारण और निर्णयन।

     इसी से निर्मित है रचना मन ,

     भारत -जनकी संसद का।

(४ )भारत नहीं है संज्ञा केवल ,

    भारत भाव विशेषण है।
 
    अति पुरातन फिर भी नूतन ,

    यह भारत का दर्शन है।

   युगकाल चिरंतन है भारत ,

   यह भारत सदा सनातन है,

  भारत का यह लक्षण है।


(५  )    सिंहासन है यज्ञ समर्पण ,

         समिधा रूप है तन मन अर्पण ,

        सिंहासन का अर्थ है रक्षण ,

        लोकाराधन ,शील - सुलक्षण ,

       त्याग ,तपस्या और संयमन।

       आदि काल से मंत्र बद्ध ,

       लोकतंत्र है भारत का मन।

(६ ) उम्र बढ़ाना ,अनुभव पाना

     दोनों चीज़ें जुदा -जुदा हैं ,

     तुम दोनों को एक समझते ,

     यही तुम्हारा नांदापन है।

     तुष्टिकरण अभ्यास पुराना ,

     भय -भ्रम दोनों ओर फैलाना ,

     करते क्या व्यवहार सही हो !

(

   

   

     

     

   










   

 



 




 



    

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