सिंहासन और लक्कड़बघ्घे -डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश ' सिंहासन की ओर न देखो लक्कड़बघ्घों ! तुम इसके हकदार नहीं हो ! (१ ) तुम क्या जानो सिंहासन को, महाप्राणक कर्त्तापन को . यह है प्रचंड अग्निसार , दाहक ज्वाला अतिदुस्तर , पार करोगे ?पास तुम्हारे इसका कोई उपचार नहीं है। (२ ) मृत शिकार को खाने वाले , लम्पट उमर बिताने वाले , वर्णसंकर सुख पाने वाले , क्या जाने सिंहासन -संसद , भारतवर्ष सुशासन क्या है ! इसका सौम्य सुवासन क्या है ! (३ )द्रुपद -सुता सी परम पावनी , है भारत की अपनी संसद , राष्ट्र निरंतर करता चिंतन , संवादन अरु प्रति -संवादन , सूत्र -विचारण और निर्णयन। इसी से निर्मित है रचना मन , भार...