राहुल (गांधी ) जितना आरएसएस के बारे में सोचते हैं यदि उसका दशांश भी अपने बारे में सोचते तो राजनीति में अपने लिए अब तक एक सम्मानजनक स्थान बना लेते
https://www.thequint.com/news/india/rights-groups-opposition-slam-activist-arrests
Outraged over multi-city raids by Maharashtra police on homes of several prominent activists and subsequent arrests, historian Ramchandra Guha and author Arundhati Roy hit out at the Prime Minister Narendra Modi-led government in the Centre.
The police arrested poet Varavara Rao in Hyderabad, activists Vernon Gonzalves and Arun Ferreira in Mumbai, trade unionist and lawyer Sudha Bhardwaj in Faridabad and Chhattisgarh and civil liberties activist Gautam Navalakha in Delhi.
The raids were carried out as part of a probe into the violence between Dalit and the upper caste groups at Koregaon-Bhima village near Pune after an event called Elgar Parishad on 31 December 2017.
A police official said all the five, who were arrested, are suspected to have Maoist links and had allegedly funded the Elgar Parishad conclave. Security officials in Delhi said two letters, purportedly exchanged by Maoist leaders indicating plans to assassinate Prime Minister Narendra Modi, BJP President Amit Shah and Home Minister Rajnath Singh, led to the police action.
अब नीचे प्रायोजित पत्रकारिता का नमूना देखिये :
ये पांच लोग पुलिस को मिली पुख्ता इत्तला के मुताबिक़ माओवादियों के इशारे पे काम कर रहे थे योजना भारत के प्रधानमन्त्री ,गृहमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की हत्या करने की रही है इस बाबत पुलिस के हाथ दो पत्र लगे हैं जिनसे ये कथित सामाजिक कार्यकर्ता और कवि नुमा देशद्रोही रक्तरंगियों के साथ शरीक दीखते हैं ।
प्रशांत भूषन और उनके जैसे जो भाषा बोल रहें हैं वह देश में आग लगाने वाली है। ये शब्द हिंसा है।
और ये राहुल नेहरुपंथी कांग्रेस का अवशेष इंग्लैंड में जाकर आरएसएस की तुलना कथित मुस्लिम भाईचारे से करके आया है। सब जानते हैं कथित मुस्लिम भाइयों में कितना भाईचारा है। जबकि मिश्र में इन पर पाबंदी आयद है।
एक ऐसी संस्था जिसका राजनीति विषय नहीं है उसके लिए असम्मानजनक भाषा का प्रयोग करना इनके बुद्धिक (बौद्धिक )स्तर का प्रमाण है। यह वही संस्था है जिसे पंडित नेहरू की नेहरुपंथी - कांग्रेस ने राहुल (गांधी)जिसके अवशेषी उच्छिष्ट भर हैं गांधी -हत्या का आरोप मढ़वाकर प्रतिबंधित बनाये रखा नौ महीना जबकि इस संस्था के लाल किले में ढ़ाई महीना चले मुकदमे में निर्दोष होने के पुख्ता प्रमाण साफ़ हो चुके थे । इस संस्था के लिए नित और भी ज्यादा बढ़ता अपार जन समर्थन देख कर नेहरू क्या सरदार पटेल का भी पसीना छूट गया था जो तत्कालीन गृहमंत्री थे। मरता क्या न करता इन महानुभावों को आरएसएस पर से प्रतिबन्ध हटाना पड़ा। हालांकि इसके रास्ते में भी और कई बाधाएं तकनीकी आधार पर खड़ी करवाई गईं थी।
यह वही संस्था है जिसके लिए न तब कोई भारतीय बेगाना था न अब और जो भारत की अखंडता को सांस्कृतिक सूत्र में पिरोये रखने में आज भी जुटी हुई है।
इस संस्था ने आज राहुल (माफ़ करना मुझे ये आज भी स्पष्ट नहीं है यह नेहरुपंथी अवशेषी राहुल क्या है गांधी तो नहीं ही है और जो भी हो ,इसीलिए मुझे संकोच होता है इसके लिए यह पाकीज़ा सम्बोधन प्रयुक्त करने में। )को उस मुकाम पे ला के छोड़ा है जहां यह न तो उनके निमंत्रण को स्वीकार कर पा रहा है और न इसके लिए इंकार करने का हौसला जुटा पा रहा है।
हमें लगता है इसे दर है कहीं वहां इसे गांधी वाद पे बोलने के लिए न कह दिया जाए। हालांकि यह ऐसा कहकर अलग हो सकता है मुझे तो उनके दर्शन का अवसर नहीं मिला मैं तो तब पैदा ही नहीं हुआ था क्योंकि इस बुद्धिवीर के लिए दर्शन का इतना ही मतलब होता है।
संदर्भ -सामिग्री :
(१ )वर्तमान नेहरू पंथी कांग्रेस का रवईया
(२ )Secrets of RSS Demystifying the Sangh -Sh Ratan Sharda (MANAS PUBLICATIONS,4402/5-A,Ansari Road ,Opp HDFC Bank ,Darya Ganj ,New -Delhi -110-002 India )
(३)Background of Ban on RSS in 1948 (ANNEXTURE III) of the above book .
Outraged over multi-city raids by Maharashtra police on homes of several prominent activists and subsequent arrests, historian Ramchandra Guha and author Arundhati Roy hit out at the Prime Minister Narendra Modi-led government in the Centre.
The police arrested poet Varavara Rao in Hyderabad, activists Vernon Gonzalves and Arun Ferreira in Mumbai, trade unionist and lawyer Sudha Bhardwaj in Faridabad and Chhattisgarh and civil liberties activist Gautam Navalakha in Delhi.
The raids were carried out as part of a probe into the violence between Dalit and the upper caste groups at Koregaon-Bhima village near Pune after an event called Elgar Parishad on 31 December 2017.
Absolutely Chilling, Says Ramchandra Guha
Historian Ramachandra Guha called the action "absolutely chilling" and demanded the Supreme Court's intervention to stop this "persecution and harassment" of independent voices.
Arrests Show Where India Is Headed, Arundhati Roy
Author Arundhati Roy said that the arrests were an “attempted coup against the Indian Constitution and all the freedoms that we cherish.” She added that they also showed us “where India is headed.”
The simultaneous state-wide arrests are a dangerous sign of a government that fears it is losing its mandate and is falling into panic. That lawyers, poets, writers, Dalit rights activists and intellectuals are being arrested on ludicrous charges while those who make up lynch mobs and threaten and murder people in broad daylight roam free, tells us very clearly where India is headed. Murderers are being honoured and protected.
Roy alleged that “murderers are being honoured and protected” and anybody who speaks up for justice or against Hindu majoritarianism is being made into a criminal.
Anybody who speaks up for justice or against Hindu majoritarianism is being made into a criminal. What is happening is absolutely perilous. In the run up to elections, this is an attempted coup against the Indian Constitution and all the freedoms that we cherish.
Arundhati Roy
A police official said all the five, who were arrested, are suspected to have Maoist links and had allegedly funded the Elgar Parishad conclave. Security officials in Delhi said two letters, purportedly exchanged by Maoist leaders indicating plans to assassinate Prime Minister Narendra Modi, BJP President Amit Shah and Home Minister Rajnath Singh, led to the police action.
अब नीचे प्रायोजित पत्रकारिता का नमूना देखिये :
ये पांच लोग पुलिस को मिली पुख्ता इत्तला के मुताबिक़ माओवादियों के इशारे पे काम कर रहे थे योजना भारत के प्रधानमन्त्री ,गृहमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की हत्या करने की रही है इस बाबत पुलिस के हाथ दो पत्र लगे हैं जिनसे ये कथित सामाजिक कार्यकर्ता और कवि नुमा देशद्रोही रक्तरंगियों के साथ शरीक दीखते हैं ।
प्रशांत भूषन और उनके जैसे जो भाषा बोल रहें हैं वह देश में आग लगाने वाली है। ये शब्द हिंसा है।
और ये राहुल नेहरुपंथी कांग्रेस का अवशेष इंग्लैंड में जाकर आरएसएस की तुलना कथित मुस्लिम भाईचारे से करके आया है। सब जानते हैं कथित मुस्लिम भाइयों में कितना भाईचारा है। जबकि मिश्र में इन पर पाबंदी आयद है।
राहुल (गांधी ) जितना आरएसएस के बारे में सोचते हैं यदि उसका दशांश भी अपने बारे में सोचते तो राजनीति में अपने लिए अब तक एक सम्मानजनक स्थान बना लेते।
एक ऐसी संस्था जिसका राजनीति विषय नहीं है उसके लिए असम्मानजनक भाषा का प्रयोग करना इनके बुद्धिक (बौद्धिक )स्तर का प्रमाण है। यह वही संस्था है जिसे पंडित नेहरू की नेहरुपंथी - कांग्रेस ने राहुल (गांधी)जिसके अवशेषी उच्छिष्ट भर हैं गांधी -हत्या का आरोप मढ़वाकर प्रतिबंधित बनाये रखा नौ महीना जबकि इस संस्था के लाल किले में ढ़ाई महीना चले मुकदमे में निर्दोष होने के पुख्ता प्रमाण साफ़ हो चुके थे । इस संस्था के लिए नित और भी ज्यादा बढ़ता अपार जन समर्थन देख कर नेहरू क्या सरदार पटेल का भी पसीना छूट गया था जो तत्कालीन गृहमंत्री थे। मरता क्या न करता इन महानुभावों को आरएसएस पर से प्रतिबन्ध हटाना पड़ा। हालांकि इसके रास्ते में भी और कई बाधाएं तकनीकी आधार पर खड़ी करवाई गईं थी।
यह वही संस्था है जिसके लिए न तब कोई भारतीय बेगाना था न अब और जो भारत की अखंडता को सांस्कृतिक सूत्र में पिरोये रखने में आज भी जुटी हुई है।
इस संस्था ने आज राहुल (माफ़ करना मुझे ये आज भी स्पष्ट नहीं है यह नेहरुपंथी अवशेषी राहुल क्या है गांधी तो नहीं ही है और जो भी हो ,इसीलिए मुझे संकोच होता है इसके लिए यह पाकीज़ा सम्बोधन प्रयुक्त करने में। )को उस मुकाम पे ला के छोड़ा है जहां यह न तो उनके निमंत्रण को स्वीकार कर पा रहा है और न इसके लिए इंकार करने का हौसला जुटा पा रहा है।
हमें लगता है इसे दर है कहीं वहां इसे गांधी वाद पे बोलने के लिए न कह दिया जाए। हालांकि यह ऐसा कहकर अलग हो सकता है मुझे तो उनके दर्शन का अवसर नहीं मिला मैं तो तब पैदा ही नहीं हुआ था क्योंकि इस बुद्धिवीर के लिए दर्शन का इतना ही मतलब होता है।
संदर्भ -सामिग्री :
(१ )वर्तमान नेहरू पंथी कांग्रेस का रवईया
(२ )Secrets of RSS Demystifying the Sangh -Sh Ratan Sharda (MANAS PUBLICATIONS,4402/5-A,Ansari Road ,Opp HDFC Bank ,Darya Ganj ,New -Delhi -110-002 India )
(३)Background of Ban on RSS in 1948 (ANNEXTURE III) of the above book .
मंगलवार को देश के कई शहरों में नक्सली संबंध के आरोपों में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गलत बताया है। उन्होंने कहा कि भारत में केवल एक एनजीओ के लिए स्थान है और इसका नाम आरएसएस है। बाकी सभी एनजीओ बंद कर दो। सभी एक्टिविस्टों को जेल में भेज दो और जो लोग शिकायत करें उन्हें गोली मार दो। न्यू इंडिया में आपका स्वागत है।
बता दें कि महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस ने मंगलवार को देश के 6 शहरों में छापा मारा। इस छापे के बाद 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें हैदराबाद से वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, फरीदाबाद से वकील सुधा भारद्वाज, दिल्ली से गौतम नवलखा, मुंबई से वरनन गोंसाल्विस और ठाणे से एडवोकेट अरुण फरेरा को गिरफ्तार किया। वहीं रांची में स्टेन स्वामी और गोवा में आनंद तेलतुंबडे से पूछताछ की गई। यह कार्रवाई एल्गार परिषद और नक्सलियों के संपर्क की जांच के बाद की गई। परिषद के कार्यक्रम में 31 दिसंबर, 2017 को हिंसा हुई थी। पुलिस ने इसके पीछे नक्सलियों का हाथ होने का दावा किया था।
ये हुए गिरफ्तार
वरवर राव कवि और वामपंथी विचारक हैं। सुधा भारद्वाज सोशल वर्कर, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फैकल्टी हैं। गौतम नवलखा नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार हैं। वरनन गोंसाल्विसजिनेस ऑर्गनाइजेशन के प्रोफेसर भी रह चुके हैं। जबकि अरुण फरेरा एक लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
क्या है आरोप?
गौरतलब है कि कोरेगांव - भीमा, दलित इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहां करीब 200 साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी, जिसमें पेशवा शासकों को एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश सेना ने हराया था। अंग्रेजों की सेना में काफी संख्या में दलित सैनिक भी शामिल थे। इस लड़ाई की वर्षगांठ मनाने के लिए हर साल पुणे में हजारों की संख्या में दलित समुदाय के लोग एकत्र होते हैं और कोरेगांव भीमा से एक युद्ध स्मारक तक मार्च करते हैं।
पुलिस के मुताबिक, इस लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाए जाने से एक दिन पहले 31 दिसंबर को एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भाषण ने हिंसा भड़काई।
वहीं, आज का घटनाक्रम जून में की गई छापेमारी के ही समान है जब हिंसा की इस घटना के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।
पुणे पुलिस ने एल्गार परिषद के सिलसिले में जून में गिरफ्तार किए गए पांच लोगों में एक के परिसर में ली गई तलाशी के दौरान एक पत्र बरामद होने का दावा किया था, जिसमें राव के नाम का जिक्र था। विश्रामबाग थाने में दर्ज एक प्राथमिकी के मुताबिक, इन पांच लोगों पर माओवादियों से करीबी संबंध रखने का आरोप है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने की गिरफ्तारी की निंदा
सिविल लिबर्टीज कमेटी के अध्यक्ष गद्दम लक्ष्मण ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह बुद्धिजीवियों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रही है।
लक्ष्मण ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम कानूनी विशेषज्ञों से मशविरा कर रहे हैं। हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे ...उनकी गिरफ्तारी मानवाधिकारों का घोर हनन है।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, ‘‘फासीवादी फन अब खुल कर सामने आ गए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह आपातकाल की स्पष्ट घोषणा है। वे अधिकारों के मुद्दों पर सरकार के खिलाफ बोलने वाले किसी भी शख्स के पीछे पड़ जा रहे हैं। वे किसी भी असहमति के खिलाफ हैं।’’
चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने पुलिस की कार्रवाई को ‘‘काफी डराने वाला’’ करार दिया और उच्चतम न्यायालय के दखल की मांग की, ताकि आजाद आवाजों पर ‘‘अत्याचार और उत्पीड़न’’ को रोका जा सके।
गुहा ने ट्वीट किया, ‘‘सुधा भारद्वाज हिंसा और गैर-कानूनी चीजों से उतनी ही दूर हैं जितना अमित शाह इन चीजों के करीब हैं।’’
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने भी छापेमारियों की कड़ी निंदा की। उन्होंने ट्विटर पर कल लिखा, ‘‘महाराष्ट्र, झारखंड, तेलंगाना, दिल्ली, गोवा में सुबह से ही मानवाधिकार के रक्षकों के घरों पर हो रही छापेमारी की कड़ी निंदा करती हूं। मानवाधिकार के रक्षकों का उत्पीड़न बंद हो। मोदी के निरंकुश शासन की निंदा करती हूं।’’
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