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जीवन का विज्ञान 'आयुर्विज्ञान 'एक विहंगम दृष्टि (विहंगावलोकन ,सरसरी तौर पर )Ayurveda a Birds Eye View

जीवन का विज्ञान 'आयुर्विज्ञान 'एक विहंगम दृष्टि' (विहंगावलोकन ,सरसरी नज़र   )Ayurveda a Birds Eye View

आयुर्वेद का उल्लेख वैदिक ग्रंथों (वेदों )में भी मिलता है। यह चिकित्सा की सबसे प्राचीन पद्धति समझी गई है जो लगातार प्रचलन में रही है। पूरे  व्यक्ति की काया और उसके चित का समाधान प्रस्तुत करती है यह चिकित्सा प्रणाली । हमारी काया और हमारे मन को आरोग्य प्रदान करने वाली समेकित चिकित्सा प्रणाली (holistic health care system )है आयुर्वेद जो महज लक्षणों का इलाज़ नहीं करती पूरे प्रतिरक्षा  तंत्र को चुस्तदुरुस्त रखने का प्रयास करती है। 

यहां रोग की तह तक पहुंचकर उसके बुनियाद कारणों की पड़ताल की जाती है। 

आचार्य चरक यहां औषध शास्त्र (भेषज चिकित्सा )के पितामह कहलाते हैं। इनका कार्यकाल (600 before common era ,BCE)ठहरता है। 'चरक संहिता 'भेषज शास्त्र पर लिखा इनका प्रामाणिक ग्रंथ समझा गया है। 

यहां तकरीबन एक लाख औषधीय पादपों ,जड़ी बूंटियों से तैयार होने वाली दवाओं की विस्तार से चर्चा आपको मिलेगी। इन दवाओं के गुणदोषों पर विमर्श मिलेगा। गुणधर्म और लक्षण भी बतलाये गए हैं इन जड़ी बूंटियों से तैयार दवाओं के। 
महर्षि चरक अपने इस ग्रंथ में मानवीय शरीरक्रिया विज्ञान (anatomy ),भ्रूण विज्ञान (embryology ),भेषज विज्ञान (pharmacology ),रक्त संचरण प्रणाली ,मधुमेह (diabetes )जैसे जीवन शैलीरोग ,तपेदिक और हृदय रोगों की चर्चा करते हैं। 

यहां नीतिपरक आचार विहार दवा और पथ्य ,हमारे अन्न पानी का (खुराक )का हमारे मन चित और काया पर पड़ने वाले असर का आकलन मिलता है। 

आचार्य सुश्रुत को आधुनिक शल्य का पितामह (father of surgery )कहा गया है। उनका ग्रंथ 'सुश्रुत संहिता ' बहुश्रुत और बहुचर्चित रहा है। इनका कार्यकाल भी 600 BCE बतलाया गया है। 

तकरीबन दो हज़ार छ: सौ बरस पहले आप यहां प्लास्टिक सर्जरी को विस्तार से बतलाते हैं। १२५ किस्म के शल्य उपकरणों का ज़िक्र आया है 'सुश्रुत संहिता' में।३०० किस्म के शल्य कर्मों का विस्तार से उल्लेख मिलता है इस ग्रंथ में। इनमें ४२ अलग अलग पद्धतियों को (surgical processes )अपनाया गया है .1120 बीमारियों का ज़िक्र आया है। 

अतिरिक्त हुनर और साहसपूर्ण कौशल से ताल्लुक रखती है प्लास्टिक सर्जरी की यह विधा। इसे rhinoplasty को समर्पित किया गया। 

'जन्मना विरूपित अंगों से पैदा संतानों के नाक -कान आदि अंग इस प्रणाली के तहत दुरुस्त करके सामान्य कर दिये जाते थे। उल्लेख है के नए अंग भी ज़रूरत के हिसाब से तैयार कर लिए जाते थे। '

ऐसा कहना रहा है मान्यवर Sir W.Hunter (British Surgeon.1718-1783 )का ।  

आयुर्वेद को मोटे तौर पर दो शाखाओं में रखा गया था :

(१ )आत्रेय सम्प्रदाय :काया चिकित्सकों का स्कूल था यह  

(२ )धन्वंतरि सम्प्रदाय (Dhanvantari Samradaya ):शल्य के माहिरों से ताल्लुक रखता था। 

इंटरनल मेडिसिन के तहत 

(१ )शल्य (surgery )और प्रजनन (fertility )

(2 )बालरोगों का विज्ञान (pediatrics ):यहां आगे आयुर्वेद के आठ अंग हैं आयुषविज्ञान ज़रा या बुढ़ाते जाने का विज्ञान (Gerontology )तक 

(3 )विषविज्ञान (toxicology ),नेत्रविज्ञान (opthalmology )

(4 )मनोरोग विज्ञान (psychiatry )

की चर्चा भी यहां आयी है। 

यहां प्रकृति (स्वभाव )के  अनुरूप टेलर मेड वैयक्तिक चिकित्सा का प्रावधान है। (personalized treatment )है। 

बुनियादी पांच शारीरिक तत्वों का जमा जोड़ है व्यक्ति विशेष ,किसी में कोई किसी में कोई अन्य पांच तत्वों का प्राधान्य है। 

त्रि -दोष (bio-forces )वात  ,पित्त और कफ ,सात धातुओं (dhatus )

तीन प्रकार के मल (three waste products of the body )इनमें शामिल किये गए हैं। 

आरोग्य की कुंजी (Secrets of good health )

दोषों ,धातुओं ,और मलों में समुचित संतुलन ,ओज (ojas )तथा एक दम  से मुस्तैद चुस्त दुरुस्त कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रिय (oragns of action and organs of knowledge ) सेहत की कुंजी हैं। इनमें संतुलन गड़बड़ाया काया और मन रोग की ओर चल दिए । 

पंच कर्म (detoxification ):इसके तहत मालिश ,हर्बल सोना बाथ ,विशेष खुराक तथा हल्का उपवास आएगा। 

Influence in the rest of the world 

Ayurveda influenced medicinal sciences in Egypt ,Greece ,Rome ,Tibet ,China ,Russia and Japan via visiting students and translations .

Ancient physicians Avicenna and Rzi Sempion quoted Ayurveda .

आयुर्वेद वर्तमान स्थिति :

दुनियाभर में इन दिनों आयुर्वेद अपनाया जा रहा है। भारत में आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय खुलते चले गए हैं हमारे देखते ही देखते। आज तकरीबन १०,००० से भी ज्यादा स्नातक अपना पाठ्यक्रम संपन्न करके चिकित्सा क्षेत्र में दाखिल हो रहे हैं साल दर  साल। 

नव्ज़ की पड़ताल के बाद रोग निदान आज भी प्रचलन में है। गए ज़माने की बात नहीं है ये। आज भी लिफाफा देखके मज़मून भांपने नव्ज़ देखके मरीज़ का अंदरूनी हाल टोह लेने वाले आयुर्वेदाचार्य हमारे बीच में हैं। 

सन्दर्भ -सामिग्री :

@Hindu Swayamsevak Sangh ,USA 

http://www.hssus.org

Ayurveda the science of life 

प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,५१ ,१३१ ,अपलैंड व्यू ,कैन्टन, मिशिगन -४८ १८८ ). 

००१  ७३४ ४४६ ५४ ५१ 

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