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भाव -सरणियाँ (क्षणिकाएं )

कौन है वह , जो दूज के चाँद सा मिला , देखते ही देखते पूर्ण चंद्र बना और  ईद का चाँद हो गया।   भाव -सरणियाँ (क्षणिकाएं )-१ 
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'यही समय है, सही समय है'...पीएम मोदी ने लाल किले से पढ़ी युवाओं के लिए यह कविता पीएम मोदी ने देश की आजादी के 75वें दिवस के मौके पर युवा पीढ़ी पर खासा फोकस रखा। पीएम मोदी ने इस दौरान कहा कि वह भविष्यदृष्टा नहीं लेकिन कर्म के फल पर विश्वास रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनका देश के युवाओं पर विश्वास है। उन्होंने कहा कि उनका विश्वास देश की बहनों-बेटियों, देश के किसानों, देश के प्रोफेशनल्स पर है। ये 'कैन डु जनरेशन' है, ये हर लक्ष्य हासिल कर सकती है। 21वीं सदी में भारत के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने से कोई भी बाधा रोक नहीं सकती। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने भाषण का अंत एक कविता सुनाकर किया। यह कविता कुछ इस तरह से है:

  'यही समय है, सही समय है'...पीएम मोदी ने लाल किले से पढ़ी युवाओं के लिए यह कविता एजेंसी,नई दिल्ली Published By: Priyanka Sun, 15 Aug 2021 09:15 AM पीएम मोदी ने देश की आजादी के 75वें दिवस के मौके पर युवा पीढ़ी पर खासा फोकस रखा। पीएम मोदी ने इस दौरान कहा कि वह भविष्यदृष्टा नहीं लेकिन कर्म के फल पर विश्वास रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनका देश के युवाओं पर विश्वास है। उन्होंने कहा कि उनका विश्वास देश की बहनों-बेटियों, देश के किसानों, देश के प्रोफेशनल्स पर है। ये 'कैन डु जनरेशन' है, ये हर लक्ष्य हासिल कर सकती है। 21वीं सदी में भारत के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने से कोई भी बाधा रोक नहीं सकती। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने भाषण का अंत एक कविता सुनाकर किया। यह कविता कुछ इस तरह से है:  यही समय है, सही समय है, भारत का अनमोल समय है। असंख्य भुजाओं की शक्ति है, हर तरफ़ देश की भक्ति है, तुम उठो तिरंगा लहरा दो, भारत के भाग्य को फहरा दो यही समय है, सही समय है, भारत का अनमोल समय है। कुछ ऐसा नहीं जो कर ना सको, कुछ ऐसा नहीं जो पा ना सको, तुम उठ जाओ, तुम जुट जाओ, सामर्थ्य को अपने पहचानो,

ये अन्नदाता नहीं भूहन्ता हैं

ट्वीट जगत से साभार : मुनींद्र मिश्र जी कहते हैं: 'हरित क्रान्ति से हुई आत्मनिर्भरता से पहले लोग ज्वार बाजरा मक्का बड़े चाव से खाते थे और इनकी खेती में जल का उपयोग भी सीमित हुआ करता था।'  हमारी टिपण्णी :मिश्र जी यही पौष्टिक अनाज हुआ  करता था खाद्य रेशों पुष्टिकर तत्वों से भरपूर।  शिवकांत जी लंदन से लिखते हैं प्रत्युत्तर में  :सच बात तो यह है ,पंजाब ,हरियाणा ,और उत्तरप्रदेश के किसान कर दाता के पैसे से सस्ती हुई दरों पर पानी ,बिजली ,खाद लेकर मजदूरों का दुनिया की न्यूनतम मजदूरी पर शोषण करते हुए ऊंची MSP पर बेचने के लिए उन जमीनों पर धान ,गेंहू और गन्ना उगाते हैं जो मोटे स्वास्थ्यप्रद अनाजों के लिए बनी है। धान गेंहू और गन्ने से भूजल सूख गया है। नहरी जल ,रासायनिक खाद और कीटनाशकों से जल -जमीं खारे और विषाक्त हो गए हैं। गेंहू ,बासमती  ने मधुमेह और जिगर के रोगों की महामारी फैला दी है। ये अन्नदाता नहीं  भूहन्ता हैं।सब्सिडी का बढ़ावा न देकर यूरोप की तरह इनकी उपज पर रोक लगनी चाहिए।  मुनींद्र मिश्र :इस पर भारत में रोक कैसे लगे कोई चर्चा तक तो करता नहीं। धान और गेंहू आज खा रहे हैं पर यही हालात